26 नवंबर 2025 को देश भर में संविधान दिवस धूमधाम से मनाया गया। स्कूलों-दफ्तरों में प्रस्तावना पढ़ी गई, राष्ट्रपति ने 9 भाषाओं में संविधान जारी किया। लेकिन सोशल मीडिया पर एक सवाल बार-बार उठ रहा है – “जो लोग संविधान की शपथ लेते हैं, वही लोग मनुस्मृति को हिंदू धर्म का आधार क्यों बताते हैं?”
ओपिनियन/एनालिसिस
तथ्य 1: RSS और मनुस्मृति का पुराना रिश्ता
- 1949 में ऑर्गनाइज़र (RSS का मुखपत्र) में लिखा गया था: “मनुस्मृति हमारा आदर्श संविधान है। डॉ. आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, वह यूरोपीय विचारों की नकल है।” (10 नवंबर 1949 अंक)
- 2021 में इंदौर में RSS के सह-सरकार्यवाह मुकुंद मोडक ने कहा था: “हिंदू राष्ट्र में मनुस्मृति ही संविधान होगी।”
तथ्य 2: बीजेपी नेताओं के बयान
- मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (2023): “हम मनुस्मृति को मानते हैं, लेकिन संविधान का भी सम्मान करते हैं।”
- राजस्थान के मंत्री किरोड़ी लाल मीणा (2022): “संविधान में बहुत सी बातें मनुस्मृति से ली गई हैं।”
तथ्य 3: संविधान बनाते समय क्या हुआ था?
- डॉ. आंबेडकर ने स्पष्ट कहा था: “मैं मनुस्मृति को जलाकर राख कर दूंगा। यह असमानता का प्रतीक है।” (25 नवंबर 1949, संविधान सभा में अंतिम भाषण)
- मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था, महिलाओं-शूद्रों पर कठोर नियम हैं – जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 के खिलाफ हैं।
सरकार का जवाब
- केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू (2024): “संविधान ही हमारा एकमात्र ग्रंथ है। मनुस्मृति पर कोई आधिकारिक स्टैंड नहीं।”
संविधान दिवस पर प्रस्तावना पढ़ाना अच्छी बात है। लेकिन जब तक संगठन और नेता मनुस्मृति को “वैकल्पिक संविधान” बताते रहेंगे, तब तक ये सवाल उठता रहेगा –
क्या हम सचमुच एक संविधान में विश्वास करते हैं, या दो संविधानों की बात चल रही है?
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