दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन उसके दिल में बसे हजारों परिवार आज भी उन सुविधाओं से वंचित हैं जो एक सामान्य जीवन के लिए जरूरी हैं। न्यूज़360 की टीम ने संगम विहार, मोतीबाग झुग्गी और आनंद पर्वत की बस्तियों का दौरा किया और पाया कि यहाँ रहने वाले बच्चों का भविष्य धुएं, धूल, गरीबी और असुरक्षा में सिमटकर रह गया है।
एक कमरे में छह लोगों की ज़िंदगी
इन झुग्गियों में एक छोटा सा कमरा ही पूरी दुनिया है। एक ही कमरे में रसोई, सोने की जगह, स्कूल बैग, बर्तन, कपड़े—सब कुछ रखा होता है। गर्मियों में तापमान 45 डिग्री के पार होता है, लेकिन बच्चों के पास पढ़ाई करने के लिए कोई शांत जगह नहीं होती।
प्रदूषण: सांस लेने तक में दिक्कत
दिल्ली की हवा वैसे ही ज़हरीली है, लेकिन झुग्गियों में हालात और भी खराब हैं। खुले में जलने वाले कचरे और धुएं से बच्चों में खांसी, अस्थमा और आंखों में जलन आम बीमारी बन चुकी है।
स्कूल जाने वालों की संख्या कम
अधिकतर बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, पर कई मजबूरी में पढ़ाई छोड़कर थोड़ा बहुत काम करने लगते हैं। कुछ बॉटल, कबाड़ या कचरा बीनकर 20–30 रुपये कमाते हैं।
माता-पिता खुद असंगठित काम करने वाले मज़दूर हैं, इसलिए शिक्षा को प्राथमिकता नहीं मिल पाती।
सपने बड़े हैं, पर रास्ते बंद
बस्तियों में रहने वाले कई बच्चों ने कहा कि वे डॉक्टर, पुलिस अफ़सर, शिक्षक बनना चाहते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि वह रास्ता कैसे तय होगा। मार्गदर्शन और अवसर की कमी उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।
न्यूज़360 हिंदी की यह ग्राउंड रिपोर्ट दिल्ली के उन चेहरों को सामने लाती है जो शहर की चमक के पीछे छिपे हुए हैं।
